Monday, May 25, 2009

वुजू करने का तरीका : Way to perform Ablution (wadhu

पानी अल्लाह की नियामत हे आखरत में हमें इसका भी हिसाब देना पड़ेगा , वुजू करते वक़्त पानी ज़यादा न बहे इसका ख्याल रखे .

वुजू करने का तरीका :

वुजू में 4 चीजे करना फ़र्ज़ हे , इनमे से कोई भी एक छुटेगा तो वुजू नहीं होगा

1. पूरा चेहरा धोना.

2. दोनों हाथो को कोहनियों समेत धोना.

3. एक चोथाई(1/4) सर पे हाथ पे पानी लगा के फेरना (मसा करना).

4. दोनों पेरो को तखनो समेत धोना.

वुजू में 13 चीजे करना सुन्नत (रसूल स.अ. व्. का बताया हुआ तरीका) हे.

1. नियत करना
2. बिस्मिल्लाह पड़ना
3. कलाई तक हाथ धोना तीन बार
4.दातो में मिस्वाक करना
5.कुल्ली करना तीन बार
6. नाक में पानी लेके साफ़ करना तीन बार
7.दाड़ी,हाथ की उंगलियों, पैर की उंगलियों में पानी पोहचना (खिलाल करना)
8. मुह, हाथ , पैर तीन तीन बार धोना.
9. सर का मसा करना 1 बार
10. दोनों कानो का मसा करना 1 बार
11. वजू करते वक़्त दुनियावी बाते न करना.
12. जल्दी वुजू करना
13. बिना रुके वजू करना ताकि कोई हिस्सा सूख न जाये.

अगर हम फ़र्ज़ और सुन्नत दोनों को शामिल करके भी वुजू करे तो भी तकरीबन 750 grm. पानी बहुत होता हे.


Way to perform Ablution (wadhu)


FOUR FARZ (REQUIREMENTS) IN ABLUTION , if any one is left out the Ablution will incomplete.
1. Washing the face from the forehead to the lower portion of the chin and from one ear lobe to the other
2. Washing of both the arms, including the elbows, once
3. Doing masah of a quarter of the head once
4. Washing of both the feet, including the ankles, once.

THERE ARE THIRTEEN SUNNATS( practised by the Prophet (PBUH) IN ABLUTION
1.Niyyat (intention)
2.Reciting of Bismillah
3.Washing of the hands thrice upto the wrists
4.Brushing the teeth by miswaak
5.Gargling three times
6.Passing water into the nostrils thrice
7. Passing of fingers between the beard,fingers of the hand and feet.
8. washing of face, hands and legs thrice.
9. Making Masah of the whole head once.
10. Masah of both the ears once.
11. one should not Indulg in worldly talk.
12.Wudhu done systematically and fast.
13.Washing of each part one after the other without pause, so no part dries up before the Wudhu is completed.

Aprox .750 grm water is sufficient for a ablution with all Farz and Sunnat.

Thursday, May 21, 2009

"पानी" रब की नियामत

हमारे रब ने हमें अनगिनत नियामते दी हे , हवा, रौशनी, पेड़, ज़मीन, फल, सब्जी, अनाज, हम गिनते गिनते थक जायेंगे मगर वो ख़त्म न होंगी, पानी भी उसकी एक नियामत हे , इन सब नियामतों का हिसाब हमे आखरत (परलोक) में देना पड़ेगा. जो हमने इस्तेमाल की हे उनका भी और जो हमने फुजूल में बर्बाद की हे उनका भी.
एक दिन हम सुबह से शाम तक जितना भी पानी इस्तेमाल करते हे, उसका हिसाब अगर करे हो हम जानेंगे के उसमे से हमने इस्तेमाल कितना किया और बर्बाद कितना किया , हमे अंदाजा नहीं होता लेकिन छोटी छोटी चीजों में हम बहुत पानी खर्च कर देते हे , जेसे हम एक दिन में जितनी बार हाथ धोते हे अगर सिर्फ उस पानी को ही जमा किया जाये तो हमे पता चलेगा के हमने सिर्फ हाथ धोने में कितना पानी खर्च कर दिया.
हमारे भोपाल शहर में तकरीबन 400 से ज़यादा मस्जिद हे , इन सब मस्जिदों में वुजू (नमाज़ पड़ने से पहले मुह, हाथ, और सर पे पानी लगाना) का इन्तेजाम होता हे , वेसे तो जब हम मस्जिद में दाखिल (प्रवेश) हो तो हमें दुनिया जहाँ की बाते नहीं करनी चाहिए लेकिन फिर भी कई लोग वुजू करते वक़्त फालतू की बाते करते हे नल में से पानी बहता रहता हे लेकिन उनको कोई फ़िक्र ही नहीं होती.हम सभी को इस बुराई से बचना चाहिए , और जो कोई ऐसा करते हुए मिले उसे समझाना चाहिए.
वुजू करते वक़्त अगर हम अगर इन बातो का ख्याल रखे तो काफी पानी बचा सकते हे :
* वुजू करते वक़्त दुनिया जहाँ की बाते न करे.* जितनी जल्दी हो अपना वुजू ख़त्म करे.* खास तोर से जब हम सर का मसा(1/4 सर पे पानी लगाना) करते हे तो ख्याल रखे के नल बंद हो. कियोकी ज़यादातर देखा गया हे के लोग मसा करते रहते हे और नल से पानी दिरता रहता हे.* नल पूरा न खोले उससे पानी ज़यादा गिरता हे.
याद रखिये हम जितना ज़यादा पानी बर्बाद करेंगे हमारा आने वाला कल उतना ही मुश्किलों से घिरा हुआ होगा.

Wednesday, May 20, 2009

मेरे पास पानी हे.......

आज हमारा शहर पानी की जिस परेशानी से गुज़र रहा हे वो हमारे लिए नया हे लेकिन प्रदेश के कई हिस्सों में लोग इसके आदि हो चुके हे , इस परेशानी से शहर वासियों को मिल कर लड़ना पड़ेगा , यह सिर्फ प्रशासन या शासन की जिमेदारी नहीं हे , हम में से हर एक को इसके लिए कुछ कदम उठाने पड़ेंगे, आज जिसके यहाँ पानी हे वो ये सोचता हे के मेरे यहाँ तो अभी पानी हे में तो अपना कॉम करू , हमे लागता हे पानी का टेंकर मंगवा लेंगे लेकिन वो टेंकर जिस कुए या ट्यूब वेल से पानी ला रहा हे उसमे क्या हमेशा पानी रहेगा ? आज ज़रुरत हे के हम रोज़ जो पानी खर्च करते हे उसमे जितनी हो सके कटोती करे , उसे सही तेरह से मेनेज हमे ही करना पड़ेगा उसके लिए शासन या प्रशासन कुछ नहीं कर सकते .इस वक़्त भी अगर हम पानी को लेकर फिक्रमंद नहीं हुए तो ......... वो दिन दूर नहीं जब
रोज़ सुबह अखबारों की हेड लाइन कुछ इस तेरह की होगी ....
( शहर में लूट की वारदाते थमने का नाम नहीं ले रही हे , कल भी दो अलग अलग जगह पे महिलाओ के गले से बदमाश पानी की बोतल झपट कर भागे )

(जिन बंदूकधारी लुटेरो ने पिछले हफ्ते दिन दहाड़े शहर की नमी होटल से दस लीटर पानी लूटा था पुलिस को आज तक उनका कोई सुराग नहीं मिला हे )

(कल CBI ने एक और सरकारी अफसर को एक लीटर पानी की घूस लेते पकडा )

(इस बार भोपाल मेले का आयोजन बड़े तलब के मैदान में रखा गया हे )

लड़की की बारात लोट जायेगी क्युकि लड़की का पिता दहेज़ में 10 लीटर पानी नहीं दे सकेगा ...

हिंदी फिल्मो के डायलाग बदल जायेंगे .....
(हीरो हिरोइन से ...जी चाहता हे तुम्हारी इन झील जेसी आँखों से २ बाल्टी पानी भर लू )

(हेरोइन हीरो से ... लोग तो प्यार में आसमान से तारे तोड़ लाते हे और तुम मेरे नहाने के लिए 2 बाल्टी पानी नहीं ला सकते )

(मेरे पास दोलत हे, बंगला हे, गाड़ी हे तुम्हारे पास क्या हे ....... भाई मेरे पास पानी हे )

Friday, May 15, 2009

कमल के दादा....

आम तोर पे अगर मुझे नमाज़ के लिए देर हो जाये तो मुझे बड़ा अटपटा सा लगता हे या यु कहे के अच्छा नहीं लगता , लेकिन उस दिन मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा जबकि में नमाज़ के लिए काफी देर से मस्जिद पंहुचा था . हुआ यु के जब में नमाज़ के लिए जा रहा था अपने घर के पास वाली मस्जिद में (ईदगाह हिल) रस्ते के किनारे मुझे एक देहाती आदमी बेठा दिखाई दिया उसकी उम्र लगभग 70-75 साल की होगी , पूछने पे के यहाँ क्यों बेठे हो उसने सिर्फ यह कहा .. में कमल को दादा , मेरो मोड़ो कमल , में कमल को दादा , उसे इसके सिवा और कुछ याद नहीं था . मेने पूछा के कहा रहता हे तुम्हारा पोता तो उसने बताया ईदगाह पे घुग्गी में , अब ईदगाह हिल्स पे काफी सारी घुग्गी हे और उनसब में जाके कमल के बारे में पूछना, आसन काम न था . उस आदमी को ये भी नहीं पता था के उसका पोता करता क्या हे . मेने पूछा ' तुम पहले कभी आये हो उसके घर 'वो बोला 'परकी बरस आयो थो उजेलो में , घेदो अंधेरो में मोको कछु समझ न आये'मुझे अंदाजा हो गया के उम्र की वजह से उसकी याददाश्त कमज़ोर हो गई थी , एक तो उसे कुछ ठीक से याद न था उपर से अँधेरा होने की वजह से उसे रास्ते का भी अंदाजा न था खेर मेने उसकी मदद करने की ठानी , उसे अपनी बाइक पे बिठा के झुग्गी के पास ले गया , पर वहा कमल नाम का कोई लड़का नहीं रहता था , दूसरी तरफ की झुग्गी पे लेके गया वह भी कोई कमल न था , अब हम तीसरे झुग्गी एरिया की तरफ चले , वहा 4-5 लड़के एक घुग्गी के बहार बेठे थे मेने कमल का पूछा थो एक बोला में ही हु कमल अँधेरा होने की वजह से मेरे पीछे कोन बेठा हे वो लड़का नहीं पहचान पाया मेने उसे नज़दीक आने को कहा तो आते ही वो बोल पड़ा ' दद्दू केसों आये ' झट से उसने अपने दद्दू के पाव छुए , मुझे थोडा सुकून मिला के चलो कमल मिला तो, गले में केसरिया गमछा माथे पे बड़ा सा तिलक एक कला सा लड़का, आते ही उसकी नज़र सबसे पहले मेरे सर पे लगी टोपी पे पड़ी , उसने हिचकिचाते हुए पूछा के दद्दू मुझे कहा मिले ,मेने उसे सारी बात बताई , उसने मुझे बताया के यह उसके दादा हे उन्हें भूलने की बीमारी हे सीहोर के पास के एक गाव के रहने वाले हे , रौशनी में तो घर तक आजाते हे पर आज अँधेरा होने की वजह से शायद रास्ता भूल गए, थोडी देर में उस झुग्गी में से दो महिलाये भी निकल के आई और उस आदमी के पैर छुए .... दद्दू तो शायद भूल गए थे के में उन्हें यहाँ लाया था .. लेकिन बाकि सब लोग ने मुझे बहुत बहुत धन्यवाद कहा , अब मुझे याद आया के मुझे तो नमाज़ पड़ने जाना था , में वहा से सीधा मस्जिद आया , नमाज़ हो चुकी थी, लेकिन उस दिन न तो मुझे अटपटा लग रहा था और न ही बुरा ... क्यो की शायद किसी भटके हुए को उसकी मंजिल तक पोहचना किसी नमाज़ या पूजा से कम नहीं .

Monday, May 11, 2009

बेटी की कहानी.....

' हमने सितारों को बदलते देखा हे
चाँद की रौशनी को ढलते देखा हे
क्या करू के हो उनपे एतबार मुझे
हमने जमाने को बदलते देखा हे '

' जहा इंसानियत भी शर्मसार होती हे
बेटो के वास्ते बेटी की बलि होती हे
कोख में ही कुचल डाले कई अनमोल रतन
हमने माँ बाप को नज़रे बदलते देखा हे '

'बेटो की चोखट पे माँ बाप को घिसटते देखा हे
बेटियों को बुढापे का सहारा बनते देखा हे
आवारा बेटा को भर पेट खिलाने के लिए
भूखी बेटी को सुलाते हुए हमने देखा हे '

बेटो को मिल जाए ज़िन्दगी का मज़ा
बेटी को बाज़ार में बिकते हुए देखा हे

हमने ज़माने को बदलते देखा हे .......




Friday, May 8, 2009

SUFIYAH's JAI HO...... TARUN's JAI HO.......

Sufiya faruqui the name, who get selected in the country’s highly competitive civil services exam, not only selected but secured 20th rank. Made our city proud, not only she there is some more who bright our state name Ankita Pande who bagged 145th rank, Avaneesh Tiwari 333rd rank, D.Satish secured 538th rank.
Now one more name who proved that success are not bound of big cities, married life, work etc. that is Tarun Pithode who secured 7th rank in this exam. In the year 2005 he had also bagged All India first rank in Indian engineering Services. He belonged to Parasia near Chindwara. These all are the Gem of our state.

No one can do any thing without God’s and parent’s bless so is the case with all these guys but even their hard work and dedication bought them this result.
This year around 3, 18,843 candidates applied for this examination out of that only 11,849 candidates qualified for mains written exam which was held in October-November 2008 and than
Out of 11,849 only 2140 candidates got call for personality test. And at final only 791 get selected that include 625 male and 166 female candidates. Tarun and Sufiya got place in top 25 out of these 791 positions.

The real exam of all these candidates will start now; by serving to the society in a proper way, this time our country really need young blood to make a corruption free nation.
We all wish them for best of luck. JAI HO… for all of them.

“ख़ुद ही को कर बुलंद इतना , के हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी राजा क्या हे”

Sunday, May 3, 2009

यह प्यास हे बड़ी ......

कई दिनों से समाचार पत्रों में पड़ रहा था के पक्षियों के लिए पानी रखना चाहिए, वो भी प्यासे होते हे , वगेरा वगेरा , मेरे एक दोस्त ने भी sms के द्वारा मुझे पक्षियों के लिए पानी रखने की सलाह दी, लेकिन हम इंसान दुसरे इंसानों की फ़िक्र नही करते तो फिर पक्षियों के बारे में केसे सोच सकते हे... मेने भी इस बात को कोई ख़ास तवज्जो नही दी।
लेकिन अभी चार दिन पहले जो घटना मेरे साथ घटी उसने मेरी आत्मा को ही हिला दिया, हुआ यु के में अपने ऑफिस में बेठा था, दो पहर के २ बज रहे थे उस दिन तापमान शायद 44 डिग्री था , गर्मी की वजह से इंसानों का हाल बुरा था तो फिर जानवरों की कोन सोचे । तभी अचानक बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पे भीड़ जमा होके कुछ देखने लगी मेने देखा तो में भी भीड़ में शामिल हो गया , वहा कही से एक जंगली कबूतर आगया था उसे शायद रास्ता नही मिल प् रहा था इसलिए इधर उधर उड़ रहा था , वो जिस तरफ़ भी जाता लोग उसे डरा के भगा देते ,
जंगली कबूतर के बारे में कहा जाता हे के वो आसानी से पकडाई में नही आता , थोडी देर इधर उधर उड़ने के बाद वो शायद थक गया था... मुझे उसकी सूरत देखके न जाने क्या लगा के मेने उसे पुचकारा वो मेरी तरफ़ देखने लगा में धीरे धीरे उसकी तरफ़ बड़ा उसने डर की वजह से पीछे कदम बढाये लेकिन पीछे दिवार होने की वजह से वो रुक गया , उसमे शायद और उड़ने की ताकत नही थी , में उसके पकड़ने के लिए जेसे ही झुका तभी पीछे से किसी ने कहा ...जंगली कबूतर को पकड़ना अशुभ होता हे .... एक पल के लिए में रुका लेकिन फ़िर मेने हिम्मत करके उसे पकड़ लिया , उसका शरीर बहुत गरम हो रहा था , मेने उसे पुचकारा तो ऐसा लगा जेसे शायद ये प्यासा हे , मेने एक मग में पानी भर के उसे दिया , में शायद कभी सोच भी नही सकता था के एक पक्षी इतना पानी पि सकता हे और वो भी इतनी तेज़ , उसकी साँस फूल रही थी में उसे अपने ऑफिस के अन्दर ले आया और एक कोने में बेठा दिया , मेने उसे फिर से पानी दिया इसबार उसने थोड़ा कम पिया , मेने उसे बिस्कुट भी खिलाना चाहा पर उसने बहुत थोड़ा सा खाया , बिस्कुट के ज़यादा उसे पानी में दिल्चस्बी थी थोडी थोडी देर में वे पानी में अपनी चोच मरता था , उसके रंग और गठे हुए शरीर की वजह से मेने उसका नाम युसूफ पठान रखा था (IPL सीरीज़ में युसूफ पठान मेरा सबसे पसंदीदा खिलाड़ी हे), में उसे बुलाता था तो वो मेरी तरफ़ देखता था शायद मुझे पहचानने लगा था । युसूफ पठान मेरे ऑफिस में तीन घंटे तक रुका , अब उसकी हालत पहले से ठीक थी और वो भी शायद जाना चाहता था , मेने एक बार फिर उसको पानी पिलाया और अपने हाथो में पकड़ के बिल्डिंग के बहार लेके आया बहार आते ही उसने पर फड फडआना शुरू कर दिया , जेसे ही मेने अपनी पकड़ ढीली की उसने उड़ान भर दी ... वेसे जाते जाते युसूफ पठान ने Thank you नही बोला , लेकिन उसकी उड़ान ही मेरे लिए किसी Thank you से कम न थी।
दुसरे ही दिन मेने मिटटी के दो कुल्हड़ ख़रीदे एक ऑफिस के बहार लटकाया दूसरा अपने घर की गेलरी में , क्या पता अगली बार कोई ...... "धोनी" आजाये , आखिर ......... यह प्यास हे बड़ी

Saturday, May 2, 2009

पुस्तक प्रेमी :

जब भी में ब्रिटिश लाइब्रेरी जो की अब (स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी ) हे जाता हु और वहा तकरीबन सभी उम्र के लोगो को देखता हु जो किताबो में खोये रहते हे तो बड़ी खुशी होती हे के आज के कंप्यूटर, इन्टरनेट के ज़माने में भी किताबो को चाहने वाले उन्हें पड़ने वाले मोजूद हे ।
कुछ दिन पहले विवेकानंद लाइब्रेरी ने रीडर सफारी नाम का कार्यक्रम आयोजित किया था जो की काफी सफल रहा। तब भी मुझे लगा के भोपाल में किताबो और लिब्रेरियो को चाहने वालो की कोई कमी नही, जो की किसी भी शहर के लिए बड़ी खुशनसीबी की बात हे ।
मुझे वो दिन भी याद हे जब ब्रिटिश कोंसिल ने लाइब्रेरी बंद करने का फेसला लिया था , और केसे हमारे पुस्तक और लिब्रेरी प्रेमियों ने रो रो कर अलविदा कहा था , किस तरहा विरोध और प्रदर्शन का सिलसिला चला था के आखिरकार हमारी सरकार को आगे आना पड़ा और लाइब्रेरी को गोद लेना पड़ा । सलाम करता हु में उन सभी लोगो को जिनकी महनत और कोशिश ने एक लाइब्रेरी को बचा लिया।
जितनी खुशी इन सब बातो से होती हे उतनी ही तकलीफ मुझे हमारे शहर की दूसरी लिब्ररियो की हालत देख कर होती हे सेंट्रल लाइब्रेरी जिसकी शुरुआत भोपाल रियासत के नवाब ने की थी जिसकी ईमारत अपने आप में एक नमूना हे , यहाँ पे मोजूद किताबे आज देश की दूसरी लिब्ररियो में मिलना मुश्किल हे , लेकिन यहाँ आने वालो में सिर्फ़ वो ही लोग हे जो यहाँ सिर्फ़ न्यूज़ पेपर पड़ने आते हे , यहाँ की किताबो को भी इंतज़ार हे उन लोगो का जो लाइब्रेरी को बचाने के लिए आंसू बहाते हे , सिर्फ़ सेंट्रल लाइब्रेरी ही नही उसकी तेरह और भी कई लाइब्रेरी जिन्हें इंतज़ार हे उनलोगों का जो किताबो से दोस्ती करते हे उन्हें चाहते हे । वरना कही इन लिब्ररियो की बूढी आँखे अपनी किताबो को छूने वालो का इंतज़ार करते करते कही बंद ही न हो जाए ।