Thursday, October 1, 2015

सोलह खम्बी

वर्षा ऋतू के बाद अपनी मोटर बाइक से लम्बी यात्रा करना मेरा जूनून है फिर कोई साथ मिला तो ठीक वरना में और मेरी बाइक
पिछले सप्ताह चिडीखो वन अभयारण जाने का विचार बना
चिडीखो में पहले भी जा चुका था , बरसात के बाद वहां के प्राकर्तिक सौंदर्य का बयां सिर्फ चंद वाक्यों में करना मुश्किल है।
वहां पहुचने पे याद आया के वो बुधवार का दिन है और बुधवार को चिडीखो बंद रहता है।
यह बात में पहले से जनता था , अब यह मेरी भूल थी या मेरे भाग्य में किसी नई जगह का भ्रमण लिखा था ।
चिडीखो के मुख्य द्वार पे मुझे एक सज्जन ने बताया के यहाँ से मात्र 3.5 की मी की दूरी पे एक स्थान है वहाँ 10वी शताब्दी का एक ऐतिहासिक स्मारक है और 16वी शताब्दी की एक दरगाह और मस्जिद है, बस फिर क्या था मैने झट से अपनी बाइक को उस दिशा में दौड़ा दिया।
नरसिंहगढ़ जाने वाले मुख्य मार्ग NH12 पे चिडीखो वन अभयारण के मुख्य द्वार से एक रास्ता कोटरा गांव को जाता है
उसी रस्ते पे मुख्य मार्ग से लगभग 3.5 की मी की दूरी पे बिहार नाम का एक गांव है वहां पहुँच के बाये तरफ एक टीले पे यह स्थान है।
टीले पे जाने के मार्ग पे सभी वाहन जा सकते है,
मै भी बाइक के साथ टीले पे पहुँच गया ,
वहां पहुँच के जो नज़ारा मेने देखा वो अदभुद था सीताफल का एक जंगली बाग़ , उसके सामने 16वी शताब्दी के संत पीर हाजी वली की दरगाह हे , दरगाह प्रांगण में एक छोटी सी 16वी शताब्दी की मस्जिद है , पूरा प्रांगण पथरों से निर्मित है,
शांत वतावरण में मोर और कई पक्षीयो की आवाज़ आपको अदभुद शांति का अनुभव देती है।
दरगाह प्रांगण से मिला हुआ एक स्मारक है जिसे सोलह खम्बी के नाम से जाना जाता है , यह 10वी शताब्दी का निर्मित है इसके 16 स्तम्भ आज भी मौजूद है, इन स्तंभों पे परमार काल की शिल्प कला साफ़ दिखाई देती है ।
यहाँ से चिडीखो और नरसिंहगढ़ की पहाड़िया और उसकी हरियाली आपको पचमढ़ी का अनुभव कराएंगी ।
अगर आप परिवार के साथ किसी ऐसे स्थान की तलाश में है जहां प्राकर्तिक सौंदर्य के साथ भीड़भाड़ न हो तो यह स्थान आपके लिए उपयुक्त है।
हा अगर आप वहाँ जाये तो खाने का सामान और पीने का पानी जरूर साथ ले जाये क्योंकि वहां आपको कोई दुकान नहीं मिलेगी।
स्थनीय लोगो का भरपूर सहयोग आपको अथिति देवो भवः की याद दिला देगा।

Friday, June 12, 2015

किसी ने मुझें समझा ही नहीं ...

क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं
बचपन में थी मासूम और हिरनी की शरारत
तोडना चाहती थी सितारे किसी भी हद तक
पर क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं

बातें करना चाँद से और सितारों को पकड़ना
हर छोटी सी बात पे पूरे घर से था लड़ना
लड़ना झगड़ना और सुबह को मान जाना
साडी हथेलियों पे कई ख्वाबो को सजाना
बाते थी अलग सोच ज़माने से जुदा
पर क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं

फिर जो आया ज़माना नया सावन लेकर
हर शख्स था दीवाना मास मुझे देख कर
जो भी आया ज़िन्दगी में बस इक मतलब लेकर
मेने चाहां था उन्हे अपने अरमां देकर
बस ये किस्मत ने न चाहां के उन्हें अपना न सकी
पर क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं

जब भी इस दिल में कोई प्यार का तूफान लाया
हर बार मुझे अपनी मोहब्बत के अंजाम पे रोना आया
दिल मेरा टूटा था कई बार मेरे अपनों से ही
पर क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं

शम्मा जलती रहेगी परवाना कभी तो आएगा
अब मेरी जिद्द के आगे मुकद्दर भी झुक जायेगा
जीतूंगी इश्क की बाज़ी ज़माने से लड़ कर
कोई आएगा जो चाहेगा मेरा अपना बन कर
वक़्त चाहे गुज़र जाये जितना भी सही
पर क्या करू के किसी ने मुझे समझा ही नहीं