Wednesday, August 8, 2012

चीटिंग

समय के साथ हर चीज़ बदल जाती है खास तोर से आपके अपनों का आपके साथ रखरखाव , वर्मा जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ , रिटायर होने के बाद जो दो लाख रुपया मिला वर्मा जी ने चारो लड़को में बराबर बाट दिया ये सोच के , के उनके बाद ये सब उनके लड़को का ही तो होगा , मंझले बेटे की ज़िद पे मकान के भी चार हिस्से कर दिए और वसीयत भी बनवा दी , पत्नी सुधा देवी ने समझाया भी था के इतनी जल्द बाज़ी ठीक नहीं पर वर्मा जी ने एक न सुनी,


अब जेसे जेसे दिन गुज़र रहे थे चारो बेटो और बहुओ का असली रंग सामने आरहा था , 40 साल तक वर्मा जी और उनकी पत्नी सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाया करते थे 8 बजे ठीक वर्मा जी को ऑफिस के लिए बस पकडनी होती थी , दोनों अक्सर बाते करते थे के रिटायर्मेंट के बाद आराम से 9 बजे उठा करेंगे और चाय की चुस्की के साथ अखबार पड़ा करेंगे .

पर ये शायद उनके भाग्य में न था , वर्मा जी की पत्नी की नई ड्यूटी ६ पोता पोती को सुबह स्कूल के लिए तेयार करना और फिर उनके लिए नाश्ता बनाना था ,पोता पोती के स्कूल जाने के बाद चारो लडको और बहुओ के लिए भी नाश्ता बनाना दोपहर का खाना बनाना और फिर रात का खाना बनाना और कभी अगर काम वाली बाई ने छुट्टी कर ली जो की वो अक्सर करती थी तो बर्तन धुलाई और झाड़ू पोचा भी करना पड़ता था .

वर्मा जी के हिस्से में पोता पोती को स्कूल लाना लेजाना , सब्जी भाजी लाना और चक्की से आनाज पिसवाना और कभी अगर गेस एजेंसी की गाडी समय पे गेस न लाये जो की अक्सर होता था तो साइकिल से गेस सिलेंडर लाना.

वेसे वर्मा जी को खुद की कोई चिंता न था लेकिन पत्नी की हालत देख के कभी कभी उनकी आँखों में आंसू आ जाते थे , उनकी समझ में बस ये नहीं आता था के आखिर 3 महीने में ये सब केसे बदल गया अभी 3 महीने पहले तक तो चारो बेटे और बहु कितने आज्ञाकारी थे अचानक केसे बदल गए , समझ में बस यही आया के अपना सब कुछ अगर अपनों के नाम करो तो अपनों को पराया होने में ज़यादा समय नहीं लगता.

जेसे तेसे 2 महीने और गुज़रे हालत बद से बदतर होते जारहे थे

एक दिन वर्मा जी ने अपने बेटो से वेष्णो देवी के दर्शन की इच्छा जाहिर की तो तीसरे नंबर के बेटे ने कहा "आप बस 1 महिना और इंतज़ार करो उसके बाद आपको हरिद्वार दर्शन करवाएंगे "

असलियत यह थी के वर्मा जी के सबसे छोटे बेटे का दोस्त NGO में काम करता था उस NGO का हरिद्वार में एक वृद्ध आश्रम था जहा उसने अपने पिता को भी रखवाया था , एक महीने बाद वहा नई भर्ती होने वाली थी वहा वर्मा जी और उनकी पत्नी के लिए लड़कों ने पहले से ही अप्लिकेशन दे रखी थी और मकान के लिए चारो ने एक बिल्डर से बात की थी जो वहा काम्प्लेक्स बनाना चाहता था जिससे चारो को मोटी रकम मिलती .

फिर एक दिन सुबह पासपोर्ट आफिस से एक आदमी वर्मा जी और उनकी पत्नी की जानकारी लेने आया , बेटे बहुओ को बड़ी हेरानी हुई , वर्मा जी ने बताया के कई महीनो पहले उन्होंने उनका और उनकी पत्नी का पासपोर्ट बनवाने के लिए आवेदन दिया था ये सोच के के रिटायर्मेंट के बाद पत्नी को कही घुमाने लेके जायेंगे , ये सुनते ही बेटे और बहुओ की हसी न रुकी , अपनी हसी रोकते हुए बड़ी बहु ने बोला अरे पापाजी अब आपकी उम्र तीर्थ यात्रा पे जाने की है न की विदेश यात्रा पे जाने की, सब फिर से हसने लगे , फिर मंझले बेटे ने पासपोर्ट आफिस वालो से बोला " अब आप आये हो तो जानकारी तो ले ही लो , इनका अगर पासपोर्ट बन गया तो हम लोगो का भी पासपोर्ट आराम से बन जायेगा "

निराश मन के साथ वर्मा जी ने सारी जानकारी दी .

जेसे जेसे दिन गुज़र रहे थे बेटे बहु की बदतमीज़ी बढती जा रही थी , छोटी छोटी गलतियों पे अब चारो बहु गलियों का भी इस्तेमाल करने लगी थी

फिर एक दिन डोर बेल बजी किसी ने वर्मा जी का पुछा , वर्मा जी ने बाहर जाके उस आदमी से बात की थोड़ी देर में वो आदमी चला गया , वर्मा जी जब वापस अन्दर आये तो चेहरे पे कुछ चिंता के भाव थे

छोटी बहु ने पुछा "कोन था " कोई नहीं बहु मेरे साथ ऑफिस में काम करने वाला पुराना दोस्त था यह कहते हुए वर्मा जी कमरे में चले गए .... वो पूरा दिन वर्मा जी किसी चिंता में डूबे रहे , रात को खाने के समय छोटे बेटे ने ने बताया के हरिद्वार से उसके दोस्त का फ़ोन आया था माँ पापा के लिए वहा सारा इंतज़ाम हो गया है अगले हफ्ते जाना होगा सभी लड़के और बहुओ ने एक दुसरे की आँखों में देखा ,दिल ही दिल में सब मुस्कुरा रहे थे ,

उस रात वर्मा जी धीरे धीरे अपनी पत्नी से बहुत देर तक बात करते रहे .

सुबह दूध वाले ने डोर बेल बजा बजा के पुरे घर को उठा दिया ... बड़ी बहु तुनक के अपने कमरे से निकलके बोली "माँ पापा आप लोगो को डोर बेल सुने नहीं देती क्या " लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया ... मंझले बेटे ने वर्मा जी के कमरे का दरवाज़ा खट खटाया ... दरवाज़ा खुला हुआ था , अन्दर देखा तो कोई नहीं था , किसी को कुछ समझ नहीं आया के आखिर माँ पापा आज सुबह से ही कहा चले गए

बड़ा बेटा झल्लाया "इनलोगों को अगर मंदिर जाना था तो पहले दूध लेना चाहिए था .... आने दो आज सारी पूजा पाठ करवाता हु".

दोपहर हुई शाम हुई रात आगई पर वर्मा जी और उनकी पत्नी वापस घर न आये सभी लड़के और बहुओ में उनके घर वापस न आने की चिंता से ज़यादा जो उस दिन काम करना पड़ा उसका गुस्सा था ,

आखिर दोनों चले कहा गए ...? , कही उन्हें हरिद्वार के प्लान का पता तो नहीं चल गया...? गुमशुदगी की रिपोर्ट करवा दे क्या ... ? कही कुछ चोरी करके तो नहीं ले गए....?

इन्ही सब आवाजों से उस रात सारा घर गूंजता रहा .

दुसरे दिन सुबह फिर दूध वाले ने घंटी बजाई काफी देर घंटी बाजके वो चला गया ....

फिर 9 बजे किसी ने घंटी बजाई काफी देर घंटी बजने के बाद जोर जोर से दरवाज़ा खटखटाया जिससे सभी की नींद खुल गई सब धीरे धीरे अपने कमरों से निकले छोटे बेटे ने जाके दरवाज़ा खोला , दरवाज़ा खुलते ही सबके पेरो के निचे से ज़मीन खिसक गई ..... दरवाज़े पे वर्मा जी नया सूट पहने हुए खड़े थे साथ में उनकी श्रीमती थी उन्होंने ने भी नई साड़ी पहनी हुई थी पीछे एक वकील और दो पुलिस वाले थे ... वर्मा जी और उनकी पत्नी के हाथो में बहुत सा सामान था लगता था जेसे बहुत शोपिंग की है

बड़े बेटे की आवाज़ निकली " पापा जी ये सब क्या है , और कहा चले गए थे आप लोग ..जानते है हम सब कितना परेशान हो रहे थे "

वर्मा जी ने मुस्कुराते हुए वकील की तरफ देखा , वकील ने बोलना शुरू किया " देखिये जी सबसे पहले तो आप सब खड़े मत रहो बेठ जाओ क्युकी अब जो में आप लोगो को बताने जा रहा हु वो सुनके आपको शायद चक्कर आजाये ,

ये जो मकान की वसीयत थी वो नकली थी असली वसीयत के हिसाब से माकन के मालिक वर्मा जी ही है उनके बाद ये माकन आपकी पूज्य माता जी का होगा और उनके बाद ये माकन अनाथ आश्रम को दान हो जायेगा फिलहाल आप सब लोग इस माकन में किरायेदार की हेसियत से हो इसलिए हर परिवार को 3000 रुपया महिना किराया देना होगा अगर यहाँ रहना हो तो

इसके बाद वर्मा जी अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले '



मुझे रिटायर्मेंट के बाद 2 लाख नहीं बल्कि 10 लाख मिले थे पर मेने तुम लोगो को 2 लाख ही बताये 8 लाख मेरे दूसरे अकाउंट में है असल में मेरे रिटायर्मेंट के बाद से अब तक का जो समय गुज़रा वो तुम सबकी परीक्षा का समय था और कल रिज़ल्ट का दिन था , रिज़ल्ट में तुम सब फेल हो गए , फिर वो अपनी छोटी बहु को देखके बोले कल मुझसे कोई दोस्त मिलने नहीं आया था बल्कि डाकिया था जो हमारा पासपोर्ट लाया था

कल में अपनी धर्मपत्नी के साथ विदेश यात्रा पे जा रहा हु और 2 महीने बाद जब हम वापस आये तो 50000 जो मेने तुम चारो को दिए है वो मुझे वापस कर देना और उसके साथ 2 महीने का मकान का किराया भी यानि तुम चारो मुझे 56000 - 56000 दोगे दो महीने बाद और अगर ऐसा न हुआ तो तो तुम लोगो का सारा सामान तो यही रहेगा पर तुम लोग सड़क पे होगे , और अगर सब ठीक से हुआ तो ठीक वरना ये पुलिस वाले धक्के मारके तुम्हे यहाँ से निकालेंगे

और हा तुम लोगो ने जो हमारे लिए हरिद्वार का प्लान बनाया था वो मुझे तब ही पता चल गया था जब रात को तुम लोग इस बारे में बात कर रहे थे, फिर वर्मा जी ने अपनी श्रीमती को मुस्कुराके देखा और बोला " खेर कोई बात नहीं हरिद्वार जाना सबके भाग्य में नहीं होता "

चलो अब हम यहाँ से चलते है आज रात में अपनी पत्नी के साथ ५ स्टार होटल में रुकुंगा फिर सुबह हमारी फिलाईट भी है ... हरिद्वार की नहीं विदेश यात्रा की " यह कहते हुए वर्मा जी पत्नी के साथ वापस चले गए

चारो लडको और बहुओ के चेहरे का रंग उड़ चुका था , किसी ने एक धीमी आवाज़ में बस यही कहा " माँ और पापा जी ने हमारे साथ चीटिंग की "