Tuesday, October 30, 2012

वाहन रेली

जेसे ही चुनाव का समय नज़दीक आया


बढती सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनज़र , परिवाहन मंत्री ने मोटर साइकल रेली नीकालने का विचार बनाया

के चुनाव तक तो जनता के बीच चर्चा का विषय बनेंगे

बेलगाम नोजवानो को यातायात नियमो से अवगत करेंगे

हर उदास चेहरे पे मुस्कान खिलेगी

रेली से पहले एक लीटर पेट्रोल, समाप्ति पे एक पाव दारू मिलेगी

नेता जी का आफर सबको खूब भाया

रेली में जन सेलाब उमड़ उमड़ कर आया

दो दिन पहले जो हेलमेट की अनिवार्यता का पाठ पड़ा रहे थे

रेली में वो खुद सबके साथ बिना हेलमेट वाहन दोड़ा रहे थे

मंत्री जी का सख्त निर्देश था ...

हर वाहन पे तीन को बेठना ज़रूरी है ,चार भी बेठ सकते है अगर कोई मजबूरी है

गलती से एक ईमानदार यातायात सिपाही ने कुछ सवारों को रोकना चाहा

इस बात पे तो जेसे प्रलय ही आगया ...

मंत्री जी ने उस सिपाही को फ़ोन पे ही लताड़ा

“आज के दिन सारे नियम हमारी जेब के अंदर है इसलिए

यातायात पुलिस आज सिर्फ गाँधी जी के बन्दर है “

कुछ सावार दुर्घटनाओं के शिकार हो गए थे

क्युकी रेली समाप्ति से पहले ही वो दारू की बोतल में खो गए थे

दुसरे दिन सभी समाचार पत्रों ने मंत्री जी की रेली को खूब सराहा

ये समाचार पड़ते ही मंत्री जी ने ‘ जय हिंद’ का नारा लगाया

Wednesday, August 8, 2012

चीटिंग

समय के साथ हर चीज़ बदल जाती है खास तोर से आपके अपनों का आपके साथ रखरखाव , वर्मा जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ , रिटायर होने के बाद जो दो लाख रुपया मिला वर्मा जी ने चारो लड़को में बराबर बाट दिया ये सोच के , के उनके बाद ये सब उनके लड़को का ही तो होगा , मंझले बेटे की ज़िद पे मकान के भी चार हिस्से कर दिए और वसीयत भी बनवा दी , पत्नी सुधा देवी ने समझाया भी था के इतनी जल्द बाज़ी ठीक नहीं पर वर्मा जी ने एक न सुनी,


अब जेसे जेसे दिन गुज़र रहे थे चारो बेटो और बहुओ का असली रंग सामने आरहा था , 40 साल तक वर्मा जी और उनकी पत्नी सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाया करते थे 8 बजे ठीक वर्मा जी को ऑफिस के लिए बस पकडनी होती थी , दोनों अक्सर बाते करते थे के रिटायर्मेंट के बाद आराम से 9 बजे उठा करेंगे और चाय की चुस्की के साथ अखबार पड़ा करेंगे .

पर ये शायद उनके भाग्य में न था , वर्मा जी की पत्नी की नई ड्यूटी ६ पोता पोती को सुबह स्कूल के लिए तेयार करना और फिर उनके लिए नाश्ता बनाना था ,पोता पोती के स्कूल जाने के बाद चारो लडको और बहुओ के लिए भी नाश्ता बनाना दोपहर का खाना बनाना और फिर रात का खाना बनाना और कभी अगर काम वाली बाई ने छुट्टी कर ली जो की वो अक्सर करती थी तो बर्तन धुलाई और झाड़ू पोचा भी करना पड़ता था .

वर्मा जी के हिस्से में पोता पोती को स्कूल लाना लेजाना , सब्जी भाजी लाना और चक्की से आनाज पिसवाना और कभी अगर गेस एजेंसी की गाडी समय पे गेस न लाये जो की अक्सर होता था तो साइकिल से गेस सिलेंडर लाना.

वेसे वर्मा जी को खुद की कोई चिंता न था लेकिन पत्नी की हालत देख के कभी कभी उनकी आँखों में आंसू आ जाते थे , उनकी समझ में बस ये नहीं आता था के आखिर 3 महीने में ये सब केसे बदल गया अभी 3 महीने पहले तक तो चारो बेटे और बहु कितने आज्ञाकारी थे अचानक केसे बदल गए , समझ में बस यही आया के अपना सब कुछ अगर अपनों के नाम करो तो अपनों को पराया होने में ज़यादा समय नहीं लगता.

जेसे तेसे 2 महीने और गुज़रे हालत बद से बदतर होते जारहे थे

एक दिन वर्मा जी ने अपने बेटो से वेष्णो देवी के दर्शन की इच्छा जाहिर की तो तीसरे नंबर के बेटे ने कहा "आप बस 1 महिना और इंतज़ार करो उसके बाद आपको हरिद्वार दर्शन करवाएंगे "

असलियत यह थी के वर्मा जी के सबसे छोटे बेटे का दोस्त NGO में काम करता था उस NGO का हरिद्वार में एक वृद्ध आश्रम था जहा उसने अपने पिता को भी रखवाया था , एक महीने बाद वहा नई भर्ती होने वाली थी वहा वर्मा जी और उनकी पत्नी के लिए लड़कों ने पहले से ही अप्लिकेशन दे रखी थी और मकान के लिए चारो ने एक बिल्डर से बात की थी जो वहा काम्प्लेक्स बनाना चाहता था जिससे चारो को मोटी रकम मिलती .

फिर एक दिन सुबह पासपोर्ट आफिस से एक आदमी वर्मा जी और उनकी पत्नी की जानकारी लेने आया , बेटे बहुओ को बड़ी हेरानी हुई , वर्मा जी ने बताया के कई महीनो पहले उन्होंने उनका और उनकी पत्नी का पासपोर्ट बनवाने के लिए आवेदन दिया था ये सोच के के रिटायर्मेंट के बाद पत्नी को कही घुमाने लेके जायेंगे , ये सुनते ही बेटे और बहुओ की हसी न रुकी , अपनी हसी रोकते हुए बड़ी बहु ने बोला अरे पापाजी अब आपकी उम्र तीर्थ यात्रा पे जाने की है न की विदेश यात्रा पे जाने की, सब फिर से हसने लगे , फिर मंझले बेटे ने पासपोर्ट आफिस वालो से बोला " अब आप आये हो तो जानकारी तो ले ही लो , इनका अगर पासपोर्ट बन गया तो हम लोगो का भी पासपोर्ट आराम से बन जायेगा "

निराश मन के साथ वर्मा जी ने सारी जानकारी दी .

जेसे जेसे दिन गुज़र रहे थे बेटे बहु की बदतमीज़ी बढती जा रही थी , छोटी छोटी गलतियों पे अब चारो बहु गलियों का भी इस्तेमाल करने लगी थी

फिर एक दिन डोर बेल बजी किसी ने वर्मा जी का पुछा , वर्मा जी ने बाहर जाके उस आदमी से बात की थोड़ी देर में वो आदमी चला गया , वर्मा जी जब वापस अन्दर आये तो चेहरे पे कुछ चिंता के भाव थे

छोटी बहु ने पुछा "कोन था " कोई नहीं बहु मेरे साथ ऑफिस में काम करने वाला पुराना दोस्त था यह कहते हुए वर्मा जी कमरे में चले गए .... वो पूरा दिन वर्मा जी किसी चिंता में डूबे रहे , रात को खाने के समय छोटे बेटे ने ने बताया के हरिद्वार से उसके दोस्त का फ़ोन आया था माँ पापा के लिए वहा सारा इंतज़ाम हो गया है अगले हफ्ते जाना होगा सभी लड़के और बहुओ ने एक दुसरे की आँखों में देखा ,दिल ही दिल में सब मुस्कुरा रहे थे ,

उस रात वर्मा जी धीरे धीरे अपनी पत्नी से बहुत देर तक बात करते रहे .

सुबह दूध वाले ने डोर बेल बजा बजा के पुरे घर को उठा दिया ... बड़ी बहु तुनक के अपने कमरे से निकलके बोली "माँ पापा आप लोगो को डोर बेल सुने नहीं देती क्या " लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया ... मंझले बेटे ने वर्मा जी के कमरे का दरवाज़ा खट खटाया ... दरवाज़ा खुला हुआ था , अन्दर देखा तो कोई नहीं था , किसी को कुछ समझ नहीं आया के आखिर माँ पापा आज सुबह से ही कहा चले गए

बड़ा बेटा झल्लाया "इनलोगों को अगर मंदिर जाना था तो पहले दूध लेना चाहिए था .... आने दो आज सारी पूजा पाठ करवाता हु".

दोपहर हुई शाम हुई रात आगई पर वर्मा जी और उनकी पत्नी वापस घर न आये सभी लड़के और बहुओ में उनके घर वापस न आने की चिंता से ज़यादा जो उस दिन काम करना पड़ा उसका गुस्सा था ,

आखिर दोनों चले कहा गए ...? , कही उन्हें हरिद्वार के प्लान का पता तो नहीं चल गया...? गुमशुदगी की रिपोर्ट करवा दे क्या ... ? कही कुछ चोरी करके तो नहीं ले गए....?

इन्ही सब आवाजों से उस रात सारा घर गूंजता रहा .

दुसरे दिन सुबह फिर दूध वाले ने घंटी बजाई काफी देर घंटी बाजके वो चला गया ....

फिर 9 बजे किसी ने घंटी बजाई काफी देर घंटी बजने के बाद जोर जोर से दरवाज़ा खटखटाया जिससे सभी की नींद खुल गई सब धीरे धीरे अपने कमरों से निकले छोटे बेटे ने जाके दरवाज़ा खोला , दरवाज़ा खुलते ही सबके पेरो के निचे से ज़मीन खिसक गई ..... दरवाज़े पे वर्मा जी नया सूट पहने हुए खड़े थे साथ में उनकी श्रीमती थी उन्होंने ने भी नई साड़ी पहनी हुई थी पीछे एक वकील और दो पुलिस वाले थे ... वर्मा जी और उनकी पत्नी के हाथो में बहुत सा सामान था लगता था जेसे बहुत शोपिंग की है

बड़े बेटे की आवाज़ निकली " पापा जी ये सब क्या है , और कहा चले गए थे आप लोग ..जानते है हम सब कितना परेशान हो रहे थे "

वर्मा जी ने मुस्कुराते हुए वकील की तरफ देखा , वकील ने बोलना शुरू किया " देखिये जी सबसे पहले तो आप सब खड़े मत रहो बेठ जाओ क्युकी अब जो में आप लोगो को बताने जा रहा हु वो सुनके आपको शायद चक्कर आजाये ,

ये जो मकान की वसीयत थी वो नकली थी असली वसीयत के हिसाब से माकन के मालिक वर्मा जी ही है उनके बाद ये माकन आपकी पूज्य माता जी का होगा और उनके बाद ये माकन अनाथ आश्रम को दान हो जायेगा फिलहाल आप सब लोग इस माकन में किरायेदार की हेसियत से हो इसलिए हर परिवार को 3000 रुपया महिना किराया देना होगा अगर यहाँ रहना हो तो

इसके बाद वर्मा जी अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले '



मुझे रिटायर्मेंट के बाद 2 लाख नहीं बल्कि 10 लाख मिले थे पर मेने तुम लोगो को 2 लाख ही बताये 8 लाख मेरे दूसरे अकाउंट में है असल में मेरे रिटायर्मेंट के बाद से अब तक का जो समय गुज़रा वो तुम सबकी परीक्षा का समय था और कल रिज़ल्ट का दिन था , रिज़ल्ट में तुम सब फेल हो गए , फिर वो अपनी छोटी बहु को देखके बोले कल मुझसे कोई दोस्त मिलने नहीं आया था बल्कि डाकिया था जो हमारा पासपोर्ट लाया था

कल में अपनी धर्मपत्नी के साथ विदेश यात्रा पे जा रहा हु और 2 महीने बाद जब हम वापस आये तो 50000 जो मेने तुम चारो को दिए है वो मुझे वापस कर देना और उसके साथ 2 महीने का मकान का किराया भी यानि तुम चारो मुझे 56000 - 56000 दोगे दो महीने बाद और अगर ऐसा न हुआ तो तो तुम लोगो का सारा सामान तो यही रहेगा पर तुम लोग सड़क पे होगे , और अगर सब ठीक से हुआ तो ठीक वरना ये पुलिस वाले धक्के मारके तुम्हे यहाँ से निकालेंगे

और हा तुम लोगो ने जो हमारे लिए हरिद्वार का प्लान बनाया था वो मुझे तब ही पता चल गया था जब रात को तुम लोग इस बारे में बात कर रहे थे, फिर वर्मा जी ने अपनी श्रीमती को मुस्कुराके देखा और बोला " खेर कोई बात नहीं हरिद्वार जाना सबके भाग्य में नहीं होता "

चलो अब हम यहाँ से चलते है आज रात में अपनी पत्नी के साथ ५ स्टार होटल में रुकुंगा फिर सुबह हमारी फिलाईट भी है ... हरिद्वार की नहीं विदेश यात्रा की " यह कहते हुए वर्मा जी पत्नी के साथ वापस चले गए

चारो लडको और बहुओ के चेहरे का रंग उड़ चुका था , किसी ने एक धीमी आवाज़ में बस यही कहा " माँ और पापा जी ने हमारे साथ चीटिंग की "

Sunday, July 1, 2012

Miss U Maa....

Maa how r u, its five years I haven’t see u and babu ji … really missing u. Sapna also miss u a lot , mom pease come to me for few days , I m sending u rail ticket , ok Maa I m waiting for u Love u Maa Call disconect .. Next call : Hello doctor, no need to arrange any expensive nurse for my wife, my mom is coming.

appoitment: अपोइन्टमेंट

मुरारी बाबू के कदमो की रफ़्तार अब और तेज़ हो गई थी पीछे आने वाले दोनों आदमियों ने भी अपनी रफ़्तार तेज़ कर दी थी मुरारी बाबू कुछ समझ नहीं पा रहे थे के आखिर ये गुंडे बदमाशों की तरह दिखने वाले आज ऑफिस से ही उनके पीछे क्यों है , वेसे कल भी ऑफिस ख़त्म होने के बाद उनकी नज़र इन दोनों आदमियों पे पड़ी थी, लेकिन सरकारी दफ्तर में तो लोगो का आना जाना लगा ही रहता है और वो भी रजिस्ट्री ऑफिस जेसा दफ्तर जहा रोजाना लाखो की रिशवत का आवन होता है , इसलिए वहा इन जेसे लोगो का होना आम बात है वेसे ओहदा तो मुरारी बाबू का भी कोई कम न था कई बार इन जेसे लोगो ने उन्हें लालच की पुडिया देने की कोशिश की थी लेकिन पिताजी की नसीहत का असर था या हिम्मत की कमी जो वो आज तक रिशवत की गंदगी से बचे हुए थे क्युकी भगवान की किरपा से घर का भरण पोषण तो उनकी पगार से ही हो जाता था , बड़ी बेटी की शादी हो ही चुकी थी बस अब बड़ा बेटा बिट्टू और छोटी बेटी गुडिया की शादी ही बची है , रिटायरमेंट में अभी 4-5 साल बाकि है और गुडिया को शादी के लिए अभी 2-3 साल है , बिट्टू की पढाई तो हो ही चुकी है हा बस काफी कोशिशो के बाद भी बेचारे को सरकारी नोकरी नहीं मिल पाई , पिछले 2 साल से प्राइवेट नोकरी कर रहा था फिर भी ठीक है कम से कम अपना खर्च तो चला ही लेता है अपनी नोकरी से . हा बस बेचारा अपनी दोस्त सपना से शादी नहीं कर पा रहा है , सपना के पिता को दामाद सरकारी नोकर ही चाहिए और वो क्यों न चाहे आखिर सपना उनकी इकलोती बेटी जो है और वो खुद भी 'ए क्लास अफसर जो है , इसीलिए तो उन्होंने बिट्टू को 1 साल का समय दिया था के वो इस एक साल में कोई सरकारी नोकरी हासिल कर ले या फिर सपना को भूल जाये . इन्ही सब खयालों में मुरारी बाबू कब सुनी सड़क तक आ गये उन्हें पता ही नहीं चला बस थोड़ी ही देर में घर भी आजायेगा , पीछे मुड के देखा तो वो बदमाश भी दिखाई नहीं दिए अब जाके उनकी जान में जान आई लेकिन घबराहट की वजह से पसीना रुकने का नाम नहीं ले रहा था, बार बार पीछे मुड के देख रहे थे के अचानक पेड़ की आड़ से दोनो बदमाश निकले एक बदमाश के हाथ में कुछ चमक रहा था मुरारी बाबू कुछ समझ पाते तब तक वो चमकदार चीज़ बड़े से छुरे के रूप में मुरारी बाबू के पेट में घुस चूका था एक के बाद एक कई वार करके दोनों बदमाश भाग निकले मुरारी बाबू बस एक चीख ही निकाल सके . अगले दिन मुरारी बाबू के क़त्ल की खबर पूरे शहर में फेल गई थी उनके मोहल्ले में तो सन्नाटा पसरा हुआ था , अंतिम यात्रा में सारा मोहल्ला और ऑफिस के सभी लोग शामिल हुए अगले दिन ऑफिस के बड़े बाबू मुरारी बाबू के घर आके उनकी विधवा से बोले " भाभी जी नियम के अनुसार मुरारी बाबू की अकस्मात् मृत्यु की वजह से उनकी नोकरी अब उनके लड़के को मिल सकती है , अगले सोमवार बिट्टू को उसके सारे सर्टिफिकेट लेके दफ्तर पंहुचा देना" भगवान् एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है ये सोच के मुरारी बाबू की पत्नी के आँखों में आंसू आगये कुछ दिनों बाद रात के अँधेरे में गली के नुक्कड़ पे बिट्टू से मिलने २ आदमी आये एक ने बदमाशों सी कड़कड़ी आवाज़ में बिट्टू से बोला : तुम्हारा काम हो गया तुम्हे अपोटमेंट भी मिल गया है अब हमारे पैसे निकालो बिट्टू : अरे अपोटमेंट नहीं अपोइन्टमेंट और मेने आप लोगों को यहाँ आने को माना किया था न , बाकि के पैसे अपोइन्टमेंट लैटर मिलते ही में आपको दे दूंगा आदमी : देखो बिट्टू बाबू अपोटमेंट लैटर हम कुछ नहीं जानते तुम बस बाकि के पैसो का इंतज़ाम जल्दी कर लो अगर कोई चालाकी की
 कोशिश की तो सबको पता चल जायेगा के सरकारी नोकरी के लालच में तुमने अपने पिता को ... बिट्टू उन दोनों की बात बीच में कटते हुए बोला 'बकवास बंद करो 4 दिन में तुम्हे तुम्हारे बाकि पैसे मिल जायेंगे, अब जाओ यहाँ से' ..

Wednesday, February 1, 2012

टिन्नी की कहानी ......

दो बहनों में एक थी वो

भोली सी मासूम

परियो की गुडिया के जेसी

नाम था उसका टिन्नी..

टिन्नी को बस ये लगता था

बडकी चलाती अपनी धाक

मम्मी पापा भी तो हर दम

देते थे बडकी का साथ

येही सोच के छोटी टिन्नी

हो जाती थी बहुत उदास....हो जाती थी बहुत उदास...

फिर हुआ यु इक बार

सर्द हवा ने टिन्नी को जब दिया बुखार

नींद उड़ी मम्मी पापा की

बडकी भी हो गई उदास

कई राते जगी थी सब ने टिन्नी के ही आस पास

तब जाके जाना टिन्नी ने

कितना सब करते है प्यार ...कितना सब करते है प्यार...

सोला का जब हुआ था सावन

मोसम ने भी बदली करवट

बडकी हो गई थी सायानी

टिन्नी का बाकि भोलापन

ऐसे में इक दिन अचानक

आया था इक राजकुमार

सब बातो से बेखबर दोनों

झूल रही सावन का झूला..

राजकुमार ने मम्मी पापा से

मांग लिया बडकी का हाथ

पार गया वो सात समंदर

बडकी को लेके अपने साथ

जाते जाते बडकी ने टिन्नी को यु गले लगाया

जेसे हो वो उसी का साया.... जेसे हो वो उसी का साया...

धीरे धीरे समय था गुज़रा

टिन्नी भी हो चली सियानी

अब वो भी करती थी अपने राजकुमार का इंतज़ार

मन में उसके इक डर था

नहीं मिलेगा उसको कोई राजकुमार...नहीं मिलेगा उसको कोई राजकुमार...

इक दिन ऐसे ही टिन्नी के पास आया इक जोगी

था वो बिलकुल मस्त मोला अपने मन का भोगी

जोगी वो मस्तान था

न कोई वारिस न सामान था

वो जोगी भी हुआ दीवाना

टिन्नी की मतवारी आँखों का

पर कुछ ऐसा था उसमे जो टिन्नी को था खूब लुभाता

अपनी मोहक बातो से वो टिन्नी को था खूब हसाता....टिन्नी को था खूब हसाता

चाँद की शीतल रात में इक बार

टिन्नी से वो मिलने आया

देख के उसकी मोहनी आँखे

टिन्नी को कुछ समझ न आया

हरयाली फूलो के उपर

टिन्नी को वो लेके आया

जोगी के मतवारे नेनो में

टिन्नी खो गई सब भुलाके...टिन्नी खो गई सब भुलाके

भोर ने अपना अंचल खोला

चिडियों ने जब शोर मचाया

आँख खुली टिन्नी की जब

खुद को इक जंगले में पाया

तभी किसी की आहट ने

टिन्नी का था धयान हटाया

सफ़ेद घोड़े पे आया कोई

था वो देश का राजकुमार..था वो देश का राजकुमार...

टिन्नी से वो यु बोला ,तुम ही तो हो मेरा प्यार,

टिन्नी के तो होश खो गए

'में केसे हो सकती हु इक राजकुमार का प्यार

फिर टिन्नी को बहो में भरके

घोड़े पर वो हुआ सवार

अगर जो पूछा राजकुमार ने 'तुम यहाँ केसे आई'

येही सोच के टिन्नी की दोनों आँखे थी भर आई

केसे बताये वो राजकुमार को उस कपटी जोगी की बात

जिसने करके मोहक बातें छोड़ दिया जंगले में लाके

राजकुमार ने फिर बोला

'इक जोगी महल में आया था

मेरा जीवन साथी यहाँ मिलेगा ऐसा मुझे बताया था'

टिन्नी को कुछ समझ न आया

था ये कोई सपना या उस जोगी की माया....उस जोगी की माया

दूर पहाड़ी पर से कोई

दोनों को था देख रहा

गोर से देखा टिन्नी ने

वो उस जोगी का चेहरा था

देख के उनकी सुन्दर जोड़ी

जोगी भी मुस्कुराया था

राजकुमार ने जब ढूंडा

वो कही नज़र न आया था....वो कही नज़र न आया था...

अब टिन्नी उस राजकुमार के राजमहल की रानी थी

छोटी प्यारी सी ये टिन्नी की कहानी थी ...टिन्नी की कहानी थी...