Saturday, August 1, 2009

नाम था गौरी

था अँधेरा बहुत चाँद भी गुम था
हम थे तन्हाई थी और कोई न था
अपनी परेशानियों से दोस्ती हो गई थी
वो ग़म ही तो थे के जिनका साथ था
ऐसे में हुई छम देखा तो कोई आया नाम था गौरी

मासूम सा चेहरा झील सी आँखे
होठ गुलाब की पंखुडी जिस्म संगेमरमर
फ़रिश्ता कोई न देखा था अहसास हुआ था
अगर होता कोई फ़रिश्ता तो ऐसा ही होता
उसकी सुन्दरता में सब खो गया था
हम भी अपने आप को भूल गए थे
ऐसे में हुई छम देखा तो कोई आया नाम था गौरी

यह शायद सपना हो मेरा सोच के हमने उसको छुआ
मेने चुने से जेसे वो जाग गई थी
फिर जो देखी उसकी आँखे दर्द ही दर्द दिखा था उनमे
उसके होंठो से निकली इक दर्द भरी आह
पास न आओ छुओ नहीं में पाक नहीं हु
ऐसे में हुई छम देखा तो कोई आया नाम था गौरी

कुछ पल के लिए में झिझक गया था
उसकी सुन्दरता का जादू गुम हो गया
वो मायूस हो गई शायद
उसको भी मेरे छूने की आस लगी थी
फिर जब देखा उसकी आँखों में
शिव सी सुन्दरता और पाकी साफ़ नज़र आई
की मेने पूरी हसरत उसको छूने की
उसने भी मेरे अहसास को था खूब सराहा
ऐसे में हुई छम देखा तो कोई आया नाम था गौरी



बीत गए सरे पल इक दूजे की बाहों में
कब ले गई नींद मुझे मालूम नहीं था
आँख खुली तो देखा में फिर तनहा था
मेरे सुने बिस्तर में इक पायल पड़ी थी
जो करती थी छम और कोई आता था नाम था गौरी

2 comments:

Unknown said...

bahut achhi likhi hai

Unknown said...

here is the blog with the photo of the upper lake it is the last one in the group and i took this one on tht day when it was raining so heavily (recently)...
http://nawaalali.blogspot.com/2009/07/1-bhopal.html