दिवाली पे इतनी सर्दी शायद ही पहले कभी पड़ी हो . उस चुभने वाली सर्दी ने दिवाली का सारा मज़ा ही बिगड़ दिया था . हर साल की तरह इस साल भी तिब्बती लोग अपने गर्म ऊनी कपड़ो की दुकाने सजा चुके थे. जेसे जेसे सर्दी बड़ती थी इन तिबत्तियो के चेहरों में ख़ुशी बड़ती जाती थी. तिबत्तियो के साथ सामने के फूटपाथ पे रहने वाली बुडी भिखारन के लिए भी यह सुनेहरा मोका होता था , इन दुकानों की वजह से सड़क पे काफी भीड़ भाड़ रहती हे, वही बेठे बेठे ही उसके भीख का कोटा पूरा हो जाता था यहाँ वहा भटकने की ज़रुरत नहीं पड़ती थी.
लेकिन फिर भी उसके सर्दी से फटे हुए झुर्रीदार चेहरे पे गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था , वजह सिर्फ एक ही 'चवन्नी' .
वेसे बस्ती वाले और फुटपाथ पे से रोज़ गुजरने वाले चवन्नी को बुडिया की नाती पोती ही समझते थे लेकिन यह बात सिर्फ बुडिया ही जानती थी के चवन्नी से उसका कोई खून का रिश्ता नहीं हे बलकि वो तो कभी कभी उस मनहूस दिन को कोसती हे जिस दिन यह चवन्नी उसके गले पड़ गई थी.
उस रात को 5-6 साल हो चुके थे जिस दिन एक बड़ी सी गाड़ी से कोई लग भाग दो- तीन साल की बच्ची को सोती हुई हालत में फुटपाथ पे छोड़ गया था. सुबह लोगो की चहल पहल से बच्ची की नींद खुली तो उसने रोना शुरू कर दिया , अपनी बुडी आँखों से बुडिया ने सारा माजरा देखा था लेकिन उसे क्या जिसकी बला हो वो जाने, लेकिन बुडिया की चिंता तब बड़ी जब बच्ची ने बुडिया के झोपडे के सामने आके और तेज़ रोना शुरू करदिया. पहले तो बुडिया ने कई बार धुतकारा लेकिन फिर शायद वो भुखी हो यह जान के बासी पाव उसे दे दिया और खुद काम पे निकल गई .
शाम को जब बुडिया वापस लोटी तो देखा वो बच्ची उसी के झोपडे में सो रही थी, उसकी अध् खुली मुठ्ठी में एक चवन्नी नज़र आ रही थी , शायद किसी ने भीख में दी थी, बस उसी दिन से उसका नाम चवन्नी पड़ गया और वो बुडिया के गले पड़ गई .
वेसे बुडिया ने चवन्नी से छुटकारा पाने के लिए एडी चोटीi का जोर लगाया लेकिन उसकी सारी कोशिश नअकाम रही.
पंडू हवलदार को सारी कहानी सुनाई लेकिन उसके कान पे जू तक न रेंगी.
हिम्मत जुटा के कोतवाली पोहची तो बड़े साब ने यह कह के "हमारे पास बच्ची गुम होने की कोई रिपोट नहीं हे"
उसे धुत्कार के भगा दिया.
लल्लू पनवाडी ने बताया नए मोहल्ले में मंगत भाई नाम का एक आदमी आश्रम चलता हे सो वो उसके पास पहुच गई,मंगत भाई ने उसकी सारी कहानी सुनी और उसपे विशवास भी किया, मंगत भाई ने बड़े प्यार से बच्ची के सर पे हाथ फेरा और उसे गोर से देखा , बुडिया को एक सूती साडी भी दी नोकर को भेजके बुडिया के लिए चाय भी मंगवाई , सच मुच मंगत भाई बहुत भले इंसान हे सोचते हुए बुडिया ने चाय की चुसकिया ली, बरसात के मोसम में गरमा गर्म चाय की बात ही कुछ और थी , बच्ची बुडिया और मंगत भाई दोनों को अजीब नजरो रे देख रही थी , बुडिया ने उसपे एक नज़र डाली और और मंगत भाई का धन्यवाद करते हुए वहा से चल दी , बहार सड़क पे हलकी बूंदा बंदी शुरू हो गई थी , बुडिया ने एक बार फिर पलट के देखा तो आश्रम की गेलरी में से बच्ची उसी को देख रही थी , तभी अचानक बुडिया को याद आया के मंगत भाई ने जो साडी दी थी वो तो उसने आश्रम में ही छोड़ दी बिजली की तेरह बुडिया आश्रम की और बड़ी बारिश की वजह से अँधेरा हो गया था आश्रम की शायद बत्ती भी गुल हो गई थी , बुडिया की साडी वही राखी थी जहा वो बेठी थी बहार गेलरी में बच्ची बारिश की बुँदे देख रही थी मंगत भाई शायद अन्दर चले गए थे , साडी उठा के बुडिया वापस पलटी ही थी के उसके कानो में मंगत भाई की आवाज पड़ी, वो शायद किसी से टेलीफोन पे बात कर रहे थे " आज ही आई हे , शकल सूरत से अच्छे घर की लगती हे , नहीं नहीं तीस हज़ार से एक भी पैसा कम नहीं , मुझे क्या पता नहीं के तुम इसके कितने दाम बनाओगे"
फोन काटने के बाद मंगत भाई गेलरी में आये तो बच्ची गायब थी.
ऑटो रिक्शा बुडिया की झोपडी के सामने ही रुका , पेसे देने के बाद बुडिया बच्ची के साथ नीचे उतरी आज शायद जीवन में पहली बार बुडिया ऑटो रिक्शा में बेठी थी आखिर जल्द से जल्द मंगत भाई के आश्रम से दूर जो जाना था
बच्ची की तरफ देखा तो बुडिया को समझ नहीं आरहा था के वो क्या करे.
बुडिया फुटपाथ पे बने अपने झोपडे के सामने बेठ गई , बच्ची भी उसके पास बेठ गई , थोडी ही देर में बुडिया ने बच्ची को अपने साथ रखने का मन बना लिया , इस ह्रदय परिवर्तन का कारण था के लोग बच्ची को भी भीक देके जा रहे थे. धीरे धीरे चवन्नी के अन्दर वो सभी गुण आ गये जो एक भिखारन में होने चाहिए.
लेकिन आज सड़क पे इतनी आवक जावक हे मगर वो करमजली चवन्नी न जाने कहा मर गई, हरामखोर को रात भर भूखा रखूंगी तो सारी अकल ठिकाने आ जायेगी बुदिया बड़बडाये जा रही थी .
अभी अगर मेरे साथ होती तो न जाने कितनी भीख जमा हो जाती के रात को कलारी से अंग्रेजी का पव्वा और मद्रासी की बची हुई मछली.... सोच के बुडिया के पोपले मुह में पानी आगया लेकिन दुसरे ही पल जेसे ही उसकी नज़र लंगडे भिखारी पे पड़ी बुडिया तिलमिला उठी , चवन्नी के न होने की वजह से आज तो लंगडे को भी बहुत भीख मिल रही हे , आखिर बुडिया से बर्दाश्त न हुआ " ऐ लंगडे तुझे कितनी बार मना किया हे फुटपाथ के इस तरफ न आया कर , तेरी समझ में नहीं आता , दूसरी बार यहाँ दिखा तो दूसरी टांग भी तोड़ दूंगी " अपना डंडा हवा में उठा ते हुए बुडिया चिल्लाई , "जाता हु जाता हु ठठरी पे बेठी हे और बाते बड़ी बड़ी , कहा लेके जायेगी इतना माल " धीरे धीरे बडबडाते हुए लंगडा सड़क के दूसरी तरफ पहुच गया.
जेसे जेसे समय गुज़र रहा था सर्दी बढती जा रही थी . गर्मियों में रह रह कर बुडिया जिस सूरज को कोसती थी आज उसी को बार बार याद करके थोडी गर्मी महसूस कर रही थी. आज तो जलाने को भी कुछ न बचा था जो पुराने टायर थे वो तो कल रात ही जला दिए थे अब तो एक ही चारा था , चवन्नी आये तो उसे भेज के कुछ कचरा जमा किया जाये जलाने के लिए. एक तो सर्दी ने परेशान किया हे उपर से आज पहली बार इतनी देर के लिए चवन्नी गायब हुई थी.
चवन्नी के बारे में सोच सोच के आज बुडिया का मन भी भीक मांगने में नहीं लग रहा था. थोडी थोडी देर में वो बडबडाने लगती थी 'अच्चा हे निगोडी मर जाये तो पिंड छुटे.
शाम का समय हो रहा था रास्ते पे लोगो की आवक भी कम हो गई थी , सर्दी की वजह से आज नुक्कड़ का चाये वाला भी अपनी गुमठी जल्दी बंद कर गया था , कुछ दूर पे आतिशबाजी की दुकाने लगी हुई हे वह काफी भीड़ थी , आज दिवाली जो हे पर सर्दी की वजह से बुडिया की वहा जाने की हिम्मत न हो रही थी .
वेसे बुडिया को ठीक से याद तो नहीं पर 70-75 सावन तो देख ही चुकी थी पर इतनी सर्दी उसने आज तक न देखि थी .
पठाखे फूटने की आवाजे आना शुरू हो गई थी , शाम ढलने लगी थी , अब बुडिया को चवन्नी की ज़यादा चिंता होने लगी थी , आखिर उसने हिम्मत जुटा के चवन्नी को ढूँढने जाने का मन बना ही लिया , अपनी गठरी को बगल में दबाके, डंडा उठाके बुडिया अभी कुछ कदम ही चली थी के दूर से किसी को आता देख रुक गई और वापस अपनी झोपडे में आगई, एक ही पल में बुडिया के चेहरे से चिंता के भाव ख़त्म हो गए थे लेकिन गुस्सा बाद गया था.
लडखडाती चाल के साथ एक लड़की झोपडी की तरफ चली आरही थी , लगभग 8-९ साल की लड़की जिस्म पे एक पुरानी फटी हुई फ्राक और सलवार जिनका रंग पहचानना भी मुश्किल था सर पे एक कपडा ऐसे बंधा हुए था के दोनों कान छुप जाये सर्दी से बचने के लिए, पेरो में दो अलग तरह की चप्पल थी, चेहरे पे मासूमियत के साथ थकान साफ़ नज़र आरही थी उसकी चाल से ऐसा लग रहा था के पेरो में कोई ज़ख्म हो जिसकी वजह से चलने में दिक्कत हो रही थी. जेसे ही वो झोपडे के सामने पोहची सबसे पहले उसका सामना बुडिया की कडकडाती आवाज़ के साथ हुआ " कहा मरने गई थी हरामखोर, बाहर निकल जा आज के बाद अपनी मनहूस शकल मत दिखाना"
बुडिया की डाट और सर्दी की कपकपाहट के साथ चवन्नी के आंसू बहने लगे.
"अब कुछ बोलेगी भी या ज़बान बेच आई हे , बोल कहा मर रही थी और ये हाथ में क्या छुपा रही हे"
डर की वजह से चवन्नी ने हाथ आगे कर दिया उसके हाथ में एक दस का नोट था .
बुडिया फिर गरजी 'कहा से आया ये दस का नोट'
अपने आंसू पोछते हुए चवन्नी ने बताया 'अम्मा कल रात तुम सर्दी की वजह से बहुत ख़ास रही थी इसलिए में बस्ती में तुम्हारे किये गरम कपडा मांगने गई थी, मेने बहुत लोगो से माँगा पर किसी ने नहीं दिया , फिर जब में वापस आरही थी तो नुक्कड़ पे एक आदमी ने मुझसे पूछा क्या चाहिए मेने कहा गरम कपडा तो वो बोला मेरे साथ चलो में देता हु , वो मुझे बस्ती के पीछे एक घर में लेके गए रास्ते में उन्होंने मुझे एक चाकलेट भी दी ,
पर अम्मा वो बहुत खराब आदमी था, रोते हुए चवन्नी बोली , पता हे अम्मा उसने मेरी फ्राक ....... दिवाली के पठाखो की आवाज़ तेज़ हो गई , थोडी देर बाद पठाखो की आवाज़ धीमे हुई ...... बुडिया अपने झोपडे से बाहर निकल कर बस्ती की तरफ मुह करके गन्दी गालिया बकने लगी
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