Wednesday, October 8, 2008

"कब्रखोदु"

कब्ररुस्तान की दीवार से लगी हुई झोपडी की चोखट पे बेठी सकीना बेचेनी से अपना फटा हूआ दुपट्टा दातो से चबा रही थी , फिक्र वही रोज वाली ‘आज भी कोई मरा या नही, गुलाम आज भी कुछ कमा के लायेगा या नही’.  
 2 दिन बचे हे ईद मे ओर कही आज रात ही चांद दिख गया तो फिर कल ही हो जाएगी ईद.  

सकीना लग भग 23-24-साल की ओरत सावला रंग बदन पे गेह्ररे पीले रंग का मेला सलवार कुर्ता आठ बरस हो गये थे उसकी शादी को इन आठ सालो मे गुलाम ने सिर्फ 2 जोड कपडे ही दिलाए थे.बाकी अब्बा ने दहेज़ मे जो कपडे दिये थे उन से ही काम चला इतने बरस. आखिर क्यु न देते कानपुर शहर के खानदानी कब्रखोदु जो थे, कब्रखोदु खानदान की वजह से ही तो ग़ुलाम को उन्होने पसन्द किया था वरना था ही क्या गुलाम के पास, वेसे दिल का बहुत नेक बन्दा है गुलाम 30-32 साल का छोटा कद गथीला बदन रंग् ऐसा के अमावस की रात भी शरमा जाये मिरज़ापुर कसबे के कब्रुस्तान मे बाप दादा के वक़्त से कब्रे खोदते आ रहे है .वेसे उसका ऐक छोटा भाई भी है लल्लन लेकिन वो नालायक अपने पुरखो का काम छोड के कानपुर शहर के बाहर पंचर की दुकान खोल के बेठा है .
 

पेहले तो गुलाम की कमाई मे उसका ओर सकीना का पुरा हो जाता था लेकिन दो से तीन हुए परवीन पेदा हुई फिर तीन से चार मजीद हुआ चार से पांच  नसीम हुआ ओर बची कुची कसर देड साल पहले छुटटन ने पूरी कर दी , आखिर पुरा हो तो कहा से हो कमाने वाला ऐक ओर खाने वाले 6 . ओर फिर आज कल जेसे लोगों के घरो मे मैयत होना ही बन्द हो गया हो वरना ऐक वक़्त था हफते मे एक अदद मैयत आ ही जाती थी ओर फिर जब बिमारियो का आना होता तो हफ्ते मे 5-6 मैयत आम बात थी , वो भी क्या दिन थे बाजार से तदुरी मुर्गा ओर मोगरे का गजरा कितने प्यार से लाता था गुलाम, हाये अब तो बस यादे ही रह गई हे , नास मिटे इन डाक्टरो का पता नही कोन सी दवाई पिला देते हे , इन की वजह से लोगो का मरना कम हो गया हे.
ऐक तो मनहुसो ने हर गली नुक्कड पे दुकाने खोल ली हे , मरीज़ कम डाकटर ज़्यादा ओर बाकी जो मर रहे हे उनके पास कुछ देने को न होता, चंदा करके तो कफन का इनतेज़ाम होता हे.


.4 मुठ्ठी चावल जो बचे थे वो भी कल रात खतम हो गये, 2 दिन से बच्चो को आधा पेट खिला रही हे  यह बोल के, के कल ज़यादा मिलेग आज सुबह भी बहाना बना दिया के आज के दिन घर मे चूलह नही जलता, परवीन सयानी हो गैइ हे सब समझ्ती हे लेकिन बाकी को समझाना बड़ा मुशकिल होता हे कई बार तो पिटाई लगा के सुलाना पड़ता हे , बुरा तो बहुत लगता हे पर क्या करे.

गुलाम बेचारा तो सुबह से ही कब्रुस्तान के दरवाजे पे बेठ जाता हे ओर शाम को मायुस हो के लोट आता हे, कल रात तो उसने कुछ भी नही खाया पानी से रोज़ा खोल के ही सो गया बोला मेरे हिस्से का भी बच्चो को दे दे , अब उसे क्या मलूम के कितना था सकीना ने भी कहा खया था.
वेसे कब्रखोदु होना भी किसी बददुआ से कम न था अगर वो कोइ दुसरा काम करना भी चाहे तो भी कोइ नही देगा आखिर कब्र जो खोदता हे. गुलाम ने भी कई बार कोशिश की के कोइ कम से कम मज़दुरी का काम ही देदे लेकिन हर बार उसे शरमिंदा होके मयूस लोटना पडा . 


इधर बच्चो ने उसका जीना हराम कर दिया था रोज़ ऐक ही सवाल अब्बा ईद के कपड़े कब दिलाओ गे , बच्चे तो बच्चे हे उन्हे कोन सम्झाए के अभी तो खाने के लाले पडे हे कपड़े कहा से आयेंगे .
पिछ्ले बरस तो रमज़ान से पेहले ही 3 कब्रे खुद गई थी तो रमज़ान ओर ईद दोनो मज़े से गुज़रे थे. 

इस बरस न जाने क्या मनहुसियत लगी हुइ हे , पिछ्ले 2 महीने से तो मिरज़ापुर मे इंसान तो क्या चिडिया का बच्चा भी न मरा था. 

लोग मरते रहे कब्रे खुदती रहे तो कब्रुस्तान मे चेहल पेहल बनी रेह्ती हे वरना तो सन्नाटे ही सन्नाटे , जो हाल कब्रुस्तान का था वो ही हाल शमशान का थ धुआ उठे कितने दिन हो गये थे.आज गुलाम को लग रहा था के शायद लल्लन ने ठीक ही किया जो धन्दा बदल लिया कम से कम किसी के मरने का तो इनतेज़ार नही करता होगा .लेकिन फिर आखरी वक़्त की अब्बा की नसीह्त याद आ जाती हे के जो भी हालत हो अपना धन्धा मत छोड्ना.

 शाम होने को थी रोज़ा खोलने का वक़्त भी होने लगा था, आज तो घर मे कुछ भी न था रोज़ा खोलने के लिये , गुलाम को अपने रोज़ा खोलने से ज़यादा बच्चो ओर सकीना के खाने की फिक्र हो रही थी आखिर सकीना का भी तो रोज़ा था 

बेचेन हो के गुलाम टेहल्ने लगा ओर कब्रुस्तान के गेट के बाहर आ गया , कब्रुस्तान को आने वालि कच्ची सडक सुनी पडी हुई थी दूर से साईकल पे कोइ आता हुआ दिखा, करीब आया तो पता चला गफूर भाई का नोकर शब्बन हे, क्या हाल हे गुलाम ‘ केहते हुए शब्बन ने साईकल रोकी बस शब्बन मिया अल्लाह का करम हे, यहा केसे आना हुआ आज. ‘अरे अपने गफूर भाई माशाअल्लाह पुरे 75 के हो चले हे से इसी खुशी मे आज सारे  मिरज़ापुर मे इफ़तारी बटवा रहे हे, कुछ हिस्से बच गये थे सोचा तुम्हे भी देता चलु ‘ केह्ते हुए शब्बन ने बडे झोले मे से ऐक पिलासटिक की थेली निकाल के गुलाम को दे दी. थेली पकडते ही गुलाम के दिल को थोडा सुकून मिला वज़न से लग रहा था के आज के खाने का इंतेज़ाम हो गया. अरे गफूर भाई 75 के हो गये लेकिन लगते अभी भी जवान हे, अपने मालिक की तारीफ सुन के शब्बन का सीना चोडा हो गया’अरे क्यु न हो मियाँ बच्पन से आज तक अनाज से ज़्यादा मेवे जो खाये है तीसरी शादी की तय्यारी मे लगे हे आज कल , ईद के बाद इरादा हे , अच्छा अब चलु बहुत काम पडा हे ‘ केह्ते हुए शब्बन ने साईकल मोड ली, गुलाम ने भी अपनी झोपडी की तरफ रुख किया
 

झोपडी के किनारे बच्चे खेल रहे थे , गुलाम पे नज़र पड्ते ही ओर उसके हाथ मे थेली देखके बच्चे खुशी से चिल्लाने लगे’अब्बा खाना लाये , अब्बा खाना लाये ‘ 
बच्चो का शोर सुनके सकीना ने भी नज़र उठाई गुलाम पे नज़र पड्ते ही जान मे जान आई , लेकिन आज कोई कब्र तो खुदी नही फिर गुलाम क्या ला रहा हे ? .अभी गुलाम रास्ते मे ही था के बच्चे दोड लगा के उस्से झूम गये परवीन भी चुट्टन को गोद मे लेके पहुच गई , ‘अब्बा क्या खाना लाये हो ? नसीम ने थेली मे झाकते हुए पूछा 
हा बेटा चलो अन्दर चलो, 
सकीना को थेली देते हुए गुलाम ने गफूर भाई की शानो शोकत का वाक्या सुनाया सकीना ने उसकी बातो पे कम धयान देते हुए थेली को थाल मे उनडेला थेली के समान से गफूर भाई की अमीरी का अन्दाज़ा लगाया जा सकता था.
कई तरह के फल , खजूरे , नमकीन , पकोडे , पपड , समोसे येह सब देख के सकीना को सुकून मिला लेकिन सुकून थोडे वक़्त क ही था ‘ इन सब चीज़ो से आज का काम तो चल जयेगा लेकिन कल ‘ सोचते हुए सकीना ने थाल उठा के बीच मे रखा , गुलाम भी वज़ू कर के आ चुका था. ‘ सब लोग  थाल के आस पास बेठ गये, बच्चो से सब्र नही हो रहा था छुट्टन तो परवीन की गोद मे मच्चल्ने लगा , गुलाम ने ऐक अंगूर उठाके उस के मुह मे रख दिया . ‘ अब्बा वो लाल गेद जेसा क्या हे’ मजीद ने थाल मे घूरते हुए पूछा’ 
'सेब केह्ते हे इसे ‘ सकीना ने जवाब दिया.
तशले मे रखी कुछ चीज़े तो बच्चो ने पेहली बार ही देखी थी . जेसे सेब, अंगूर , अनार 

सब को बस गोला फूटने का इनतेज़ार था , नसीम बार बार एक ही बात पूछ रहा था ‘अब्बा नये कपडे लेने कब चलोगे ‘ , गुलाम ने इस बार उसे एसे घूरा के वो सहम के खामोश हो गया . थोडी देर मे गोला फूटा सब ने दुआ मांग के खाना शुरु किया गुलाम ने बस 4-5 खजूरे खाके पानी पी लिया सकीना ने कुछ ओर देना चाहा लेकिन गुलाम ने बच्चो की तरफ बडा दिया, ओर खुद नमाज़ पड्ने लगा. थोडी देर बाद सकीना भी उठ गई अब तशले पे परवीन का हुक्म था , नमाज़ पड्ने के बाद गुलाम झोपडी के बाहर आके बीडी पिने लगा सकीना भी उसके पास आके बेठ गई ओर गुलाम की माचिस से लालटेन जलाने लगी की तभी अनदर मजीद ओर नसीम झगडने लगे खाने को लेके छुट्टन भी रोने लगा बस फिर क्या था अपनी गरीबी का सारा गुस्सा गुलाम ने बच्चो पे उतार दिया शुरु से ले कर आखिर तक सब के 1-2 हाथ पडे , सकीना बहर ही बेठी रही सारे बच्चे रोते हुए उसके पास पहुच गये , गुलाम अन्दर ही लेट गया . 
 सकीना सबको दुलारने लगी

थोडी देर बाद कसबे से गोले छुट्ने की आवाज़े आने लगी सकीना समझ गई के ईद का चाँद दिख गया उसने आसमान की तरफ देखा , बहुत महीन सा चाँद ईद की खुशीया लिये दूर आसमान मे दिख रहा था लेकिन गुलाम ओर सकीना के लिये मयुसी से ज़यादा ओर कुछ न था. ‘ अम्मी अब्बा को पेसे नही मिले इसलिये गुस्सा हे ना’ परवीन ने मासुमियत से पुछा 
हा बेटा उनकी कमाई नही हुइ इसलिये मजीद बोला’ अम्मी अब्बा की कमाई क्यु नही हुई ‘ 
बेटा  कई दिन से कोई मरा ही नही हे , तुमहारे अब्बा को कब्र खोदने का काम नही मिला हे इसलिये उनकी कमाई नही हुई।

‘ तो अम्मा इस बार ईद पे हमे नये कपडे भी नही मिलेगे ‘ नसीम ने पूछा।
बेटा जब तक कोई मरेगा नही हमारे पास पेसे नही आयेंगे ओर जब पेसे नही होंगे तो ईद के कपडे भी नही आयेंगे एसे सवालो के जवाब देना सकीना को भी अजीब लग रहा था’ चलो अब तुम लोग चुप चाप बहर ही खेलो अब्बा अन्दर आराम कर रहे हे शोर मत करन मुझे भी नमाज़ पडनी हे ‘ कहते हुए लालटेन लेके सकीना भी अन्दर जाने लगी के नसीम ने उसका कुर्ता पकड के बोला ‘ अम्मी नमज़ मे आप अल्लह से केहना के जल्दी से किसी को मार दो ताकी अब्बा को पेसे मिले ओर वो हमे नये कपडे दिलवाये ‘ 
सकीना को समझ न आया के क्या कहे।
अन्दर गुलाम करवट लिये लेटा था ‘ सुनते हो ईद का चान्द दिख गया’ सकीना ने धीमी आवाज़ मे कहा पर गुलाम ने कोइ जवाब नही दिया लालटेन की धीमी रोशनी मे सकीना ने गुलाम के आंखो मे आंसु चमकते हुए देखा तो उसके करीब बेठ के प्यार से बोली ‘ परेशान न हो आप अल्लह ने चाहा तो अगली ईद हमारी भी अच्छे से गुज़रेगी ‘ ‘ केह के नमाज़ के लिये खडी हो गई।

नमाज़ खतम करके सकीना बिसतर लगा रही थी गुलाम की आंख लग चुकी थी बच्चे ने भी अन्दर आना शुरु कर दिया था के तभी झोपडी के बहर 2 लोग सईकल पे आये ‘अरे गुलाम कहा हो ’ , सकीना ने गुलाम को जगाया ‘ सुनो कोइ आपको बुलाने आया हे ‘ 
गुलाम ने बाहर आके देखा तो गफूर भाई का नोकर शबब्न एक ओर आदमी के साथ था ‘ अरे शब्बन भाई क्या हुआ सब खेरियत तो है ‘ गुलाम ने पुछा 

खेरियत नही हे मिया थोडी देर पेहले गफूर भाई का इंतेकाल हो गया जल्दी चलो उनके लिये कब्र खोदनी हे ‘ रोते हुए शब्बन ने कहा’ 
अरे लेकिन आखिर् हुआ क्या शाम तक तो तुमने कहा था तनदुरुस्त थे’ ?
अरे मत पूछो मिंया बड़ा बुरा वक़्त आ गया हे सुना हे पिछ्ले हफते जिस लडकी को देख के आये थे ,शादी के लिये शगुन मे लाख रुपे का हीरे का हार भी दे आये थे , आज खबर आइ के वो किसी ओर के साथ भाग गई बस अपने गफूर भाई बेचारे सदमा बरदाश्त न कर सके, चलो मिंया जल्दी करो बहुत काम बाकी हे ’ गुलाम ने अपना फावडा ओर तगडी उठाई ओर उनके साथ चल दिया .
गुलाम के जाते ही झोपडे मे फिर से बच्चो का शोर शुरु हो गया ’गफूर भाई मर गये नये कपडे आयेंगे , गफूर भाई मर गये नये कपडे आयेंगे, गफूर भाई मर गये नये कपडे आयेंगे !