Tuesday, July 15, 2008

इंसानियत.....आज की

बगेर नोक झोक के घर से काम के लिए निकलना अपने आप में एक बड़ा काम हे , जिस के साथ ऐसा हो वो समझता हे के आज उसने बहुत बड़ा तीर मार लिया। ऐसा ही कुछ उस दिन मेरे साथ हुआ , और शायद इसी वजह से एक लड़के पे मेहरबान होके उसे अपनी स्कूटर पे लिफ्ट दे बेठा ।लिफ्ट मांग के लूट और जेब कटी की वारदाते बड़ गई हे इस बात का ख्याल मुझे थोडी देर बाद आया, अब अगर उस लड़के को उतरने का कहता हु तो यह शिष्टाचार के खिलाफ होगा सो पूछ ही बेठा ' कहा तक जाना हे ' ।'बस अगले चोराहे पे उतर जाऊंगा भइया ' धीमी सी आवाज़ में उस लड़के ने जवाब दिया, बस फ़िर तो मुझे बड़ी बेसब्री से अगले चोराहे का इंतज़ार होने लगा के कब वो चोराहा आए और इस मुसीबत से मेरा पीछा छुटे । साइड गिलास में मेरे चेहरे पे चिंता और परेशानी के भाव साफ़ दिखाई पड़ रहे थे , और चोराहा था के आने का नाम नही ले रहा था , मन में आया के पिछली जेब में रखा अपना पर्स चेक कर लू, लेकिन फ़िर वही के लड़का क्या सोचेगा ,आखिर भगवन को मेरी परेशानी पे तरस आ ही गया ओर चोराहा आ गया , मेने झट से स्कूटर रोकी , लड़के ने स्कूटर से उतर के बड़ी विनर्मता के साथ हाथ जोड़ कर मुझे धन्यवाद कहा और तेज़ कदमो के साथ वहा से चल दिया, उसके जाते ही मेने झट से अपना पिछली जेब में रखा पर्स चेक किया, जेब पे हाथ लगते ही मेरे होश उड़ गए मेरा पर्स गायब था ,फिर क्या था बगेर किसी देरी के मेने चिल्लाना शरू कर दिया 'पकडो उस लड़के को पकडो मेरी जेब काट के भागा हे 'फ़िर क्या था हमारी आम जनता के लिए तो इतना डायलाग ही काफी होता हे , कुछ राहगीरों ने दोड़ लगाके उस लड़के को दबोच लिया , इससे पहले के वो कुछ समझ पाता , जनता ने उसपे हाथ साफ़ करना शुरू कर दिया , मेने भी २-३ हाथ जड़ दिए के तभी अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी रिसीव किया तो दूसरी तरफ़ से मेरी माता श्री की आवाज़ आई ' आज कल ध्यान कहा रहता है अपना पर्स यही छोड़ गए '
मेरि समझ मे नहि आया के येह सब क्या हुआ
थोडी देर तक मे सोचता रहा ओर जब तक समझता जनता अपना काम कर चुकी थी , सडक किनारे बेहौशी की हालत मे वो लड्का पडा हूआ था , उसके मुह से खून बेह रहा था , कपडे फट गये थे , उसके टिफिन का सारा भोजन साडक पे बिखर गया था, यह देख के मुझे बोहत बुरा लगा , मुझे मेरी गलती पे पशतावा होने लगा ,मेने उसकी मदद करने का सौचा पर जेसे ही थोडा आगे कदम बडाया के फिर से मेरे मोबाईल कि घनटी बजी, काल सुना तो मेरे बास कि कड्कडाती हुई आवाज मेरे कान मे गई " क्या बात हे तुम ज़यादा काम वाले दिन हि कयु लेट होते हो, इस नौकरी से कया दिल भर गया हे क्या…? " येह सुनते ही मेरा सारा पश्चाताप छूमंतर हो गाया, मे वापस
तेज़ कदमो से अपनी स्कूटर की तरफ बडा, लेकिन फिर सोचा आखिर इस दुनिया मे इंसानियत भी कोइ चीज़ हे मे , मे वापस उस लड्के के पास गया , तब तक उसे होश आ चुका था उसकी आंखो मे आंसु थे , मेने हमदर्दी से उसके कन्धे पे हाथ रखा ओर धीमि सी आवाज मे कहा " सारी यार माफ कर देना" इससे पेहले के वो कुछ समझ पाता मेने स्कूटर स्टार्ट की ओर आगे बड गया.

2 comments:

Unknown said...

a very nice story...it compells you to read it till the end...but plz write something positive....all poeple are not bad....and even "bad "poeple are not always bad...

Unknown said...

a Emotional one...but end happy hona chaye naa...but it touched my heart really.......